माँ संतोषी आदि काल से सृष्टी में हैं। ये आदि शक्ति का ही एक रूप है। विभिन्न युगों में स्थाई सिद्धियाँ प्राप्त करने के लिए जैसे दीर्घकालीन साधनाए की जाती रहीं हैं। कलियुग में इच्छाओं और वासनाओं का रूप बदला है। छोटी-छोटी सांसारिक कामनाएँ और समस्याएं हैं। जिनका तत्काल निदान पाने के लिए कम समय वाले छोटे अनुष्ठान और त्वरित फल देने वाले देवी-देवताओं के परम भक्तों का आह्वान किया जाता है। हनुमान जी , भैरों जी, विभिन्न जुझार और सतियाँ इनमें शामिल है। माँ संतोषी आदि शक्ति की तीसरी पीढी या स्तर का प्रतिनिधित्व करती हैं। ये विघ्न हरता परम संतुष्ट गणेश की पुत्री और शिव-शक्ति अर्थात शंकर और पार्वती की पौत्री हैं। ये किसी काम या कामना के तत्काल निदान के लिए पूजी जाती हैं। इसलिए सोलह शुक्रवार की व्रत-पूजा का विधान है।
यह सही है की सन १९७५ में जबइनकी कथा पर आधारित फ़िल्म रिलीज हुई तो संतोषी माता एकाएक अधिक प्रकाश ने आई। यह फ़िल्म उस काल की सुपर-डुपर हिट साबित हुई। आप की जिज्ञासा का समाधान इसी में निहित है। अर्थात उस समय भी संतोषी माता के भक्तों की संख्या इतनी थी, जिन्होंने एक साधारण सी लो बजट की फ़िल्म को ब्लोकबस्टर बना दिया। उस वक्त और उससे पूर्व भी उत्तर भारत में इन्हें संतोषी माता और पूर्वी भारत में संकटा देवी के नाम से पूजा जाता रहा है।